सार
दिल्ली के करोलबाग इलाके में छोटी-छोटी इमारतों में गेस्ट हाउस या होटल चलते हैं। इनमें से ज्यादातर के पास वैध नियमों से होटल चलाने की अनुमति तक नहीं होती। इनमें से ज्यादातर इमारतें उन नियमों का पालन नहीं करतीं, जिनके आधार पर होटल या बैंक्वेट हॉल खोले जा सकते हैं…
विस्तार
नगर निगमों के बुलडोजर से अवैध इमारतें गिराने में व्यस्त हैं, इसी बीच नगर निगम अधिकारियों के भ्रष्टाचार का ऐसा दुखद प्रमाण सामने आया है, जिसके कारण दिल्ली के 27 परिवारों में हमेशा-हमेशा के लिए अंधेरा छा गया। दिल्ली के मुंडका इलाके में एक चार मंजिला इमारत में शुक्रवार शाम आग लगने से 27 लोगों की मौत हो गई। इसी प्रकार करोलबाग के अर्पित पैलेस अग्निकांड में 17 लोगों की और अनाज मंडी अग्निकांड में 43 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई थी।
इन सभी हादसों में एक ही लापरवाही सामने आई थी कि इन सभी इमारतों में किसी दुर्घटना के होने पर निकासी का कोई वैकल्पिक रास्ता नहीं था। इससे आग लगने पर लोग इमारतों से बाहर नहीं निकल पाए और जलकर उनकी मौत हो गई। हर हादसे में यह तथ्य भी सामने आया है कि ज्यादातर लोग आग में झुलसने से नहीं, बल्कि धुएं में दम घुटने से मरते हैं। यदि इन इमारतों में निकास का कोई वैकल्पिक रास्ता होता, तो इन सभी की जान बचाई जा सकती थी। हर हादसे के बाद इमारतों में सभी नियमों का पालन करने की बातें कही जाती हैं, लेकिन कुछ ही समय बीतने के बाद सब कुछ भुला दिया जाता है और एक नए हादसे का इंतजार होने लगता है।
दिल्ली के करोलबाग इलाके में छोटी-छोटी इमारतों में गेस्ट हाउस या होटल चलते हैं। इनमें से ज्यादातर के पास वैध नियमों से होटल चलाने की अनुमति तक नहीं होती। इनमें से ज्यादातर इमारतें उन नियमों का पालन नहीं करतीं, जिनके आधार पर होटल या बैंक्वेट हॉल खोले जा सकते हैं। लेकिन नगर निगमों में भ्रष्टाचार का लाभ उठाकर अधिकारियों को रिश्वत देकर ये होटल चलते रहते हैं और लोगों की जान से खिलवाड़ करते रहते हैं।
चूंकि, इस तरह की घटनाओं के बाद अब तक किसी नगर निगम अधिकारी या अग्निशमन विभाग के अधिकारी को सजा नहीं हुई, लिहाजा मौत का यह खेल बदस्तूर जारी रहता है। अर्पित होटल अग्निकांड में भी नियमों की भारी अवहेलना पाई गई थी, लेकिन इसके बाद किसी होटल पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
अनाजमंडी का मौतकांड
हाल के वर्षों में दिल्ली की अनाज मंडी में सबसे भयानक अग्निकांड आठ दिसंबर 2019 को हुआ था। इस इमारत में बैग, जूते, बेल्ट बनाने जैसे छोटे-छोटे काम हुआ करता था। काम करने के बाद मजदूर उसी इमारत की ऊपरी मंजिल पर खा-पीकर सो जाते थे। घटना वाली रात भी सभी श्रमिक अपना-अपना काम करके सो गए थे, जो उनकी जिंदगी की आखिरी रात साबित हुई। इमारत की पहली मंजिल पर आग लगी और मजूदूर इससे बचने के लिए ऊपर की मंजिल की ओर भागे। इमारत से बाहर निकलने का केवल एक ही रास्ता था और आग उसी के आसपास लगी हुई थी।
चूंकि इमारत में बैग-बेल्ट बनाने का काम होता था, इमारत में इसके निर्माण में काम आने वाले प्लास्टिक, पेपर का सामान काफी मात्रा में रखा हुआ थे। आग धधकने के साथ इन सामानों में तेजी से आग लगी और आग फैलती गई। प्लास्टिक में आग लगने से खतरनाक गैसें निकलने लगीं और ऊपरी मंजिल पर फंसे श्रमिकों का दम घुटने लगा। इमारत की ऊपरी मंजिल पर ताला बंद था और बाहर छत की तरफ निकलने का भी कोई रास्ता नहीं था। मजदूरों ने खिड़कियों को तोड़ने की कोशिश जरूर की थी, लेकिन उन पर लोहे की रॉड लगी होने के नाते वे उन्हें नहीं तोड़ पाए।
घटना के बाद जांच में सामने आया था कि सबसे ज्यादा श्रमिकों की मौत दम घुटने से हुई थी। यदि ऊपरी मंजिल से छत पर जाने का दरवाजा बंद न होता, यदि आपातकालीन घटना के लिए कोई वैकल्पिक रास्ता होता तो इन लोगों की जान बचाई जा सकती थी।
अर्पित होटल अग्निकांड में भी वही कहानी
करोलबाग के अर्पित होटल अग्निकांड (12 फरवरी 2019) में भी यही लापरवाही सामने आई थी। होटल की ऊपरी मंजिल पर खाना बनाने की व्यवस्था थी। नियमतः इस तरह के भवनों में भोजन बनाने के लिए अलग से व्यवस्था होनी चाहिए, जहां सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम होने चाहिए। बताया जाता है कि इस होटल में आग लगने की स्थिति में इससे निपटने की कोई व्यवस्था तक नहीं थी। होटल की ऊपरी मंजिल में आग लगी और अचानक ही नीचे तक पहुंच गई। होटल में बाहर निकलने का केवल एक ही रास्ता था, लेकिन आग लगने के बाद उससे होकर कोई बाहर नहीं निकल पाया।
बचने के लिए लोग ऊपरी मंजिल से चद्दरों के साथ नीचे उतरकर या कूदकर अपनी जान बचाने की कोशिश करने लगे, लेकिन इनमें से ज्यादातर की मौत हो गई। होटल में एक रस्से तक की व्यवस्था नहीं थी, जिसे पकड़कर लोग नीचे आ सकते और अपनी जान बचा सकते। इस कारण एक-एक कर लोगों की जान जाती रही।
आग लगने की सूचना मिलने के बाद दमकल विभाग की जो गाड़ियां मौके पर पहुंचीं, उन्हें वहां पहुंचने में भी ज्यादा समय लगा क्योंकि मुख्य मार्ग से घटनास्थल तक जाने के मार्ग के लिए उपयुक्त जगह पर कोई कट नहीं था। बात यहीं पर खत्म नहीं हुई, घटनास्थल पर पहुंचीं दमकल विभाग की गाड़ियों के पास इतनी ऊंची सीढ़ियां तक नहीं थीं, जो होटल की ऊपरी मंजिल तक पहुंच सकतीं और लोगों की जान बचा पातीं। जब तक पूरा इंतजाम हो पाता, 17 लोगों की जान जा चुकी थी।
मुंडका में भी वही लापरवाही
मुंडका अग्निकांड में भी वही लापरवाही सामने आ रही है जो दिल्ली के अन्य अग्निकांडों में देखी गई थी। कुछ प्रमुख कारण जो अब तक सामने आ चुके हैं, इस प्रकार हैं-
- इमारत के पास अग्निशमन विभाग से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट तक नहीं था।
- इमारत में बाहर निकलने का कोई वैकल्पिक रास्ता नहीं था जिससे लोग बचकर अपनी जान बचा सकते।
- इमारत से बाहर निकलने के लिए सीढ़ी, रस्से तक का इंतजाम नहीं था।
- इमारत में आग बुझाने के यंत्र भी उपलब्ध नहीं थे।
- इमारत में अतिज्वलनशील पदार्थ रखे हुए थे। इस तरह के पदार्थ रखने के लिए जिस तरह की सावधानी रखी जानी चाहिए, उस तरह की सावधानी नहीं रखी गई थी।
कब होगा नियमों का पालन
इस समय नगर निगम अपने बुलडोजर से दिल्ली के अवैध इलाकों में लगातार तोड़फोड़ की कार्रवाई कर रहा है। इसका पुरजोर विरोध भी हो रहा है क्योंकि एक वर्ग का आरोप है कि बुलडोजर के बहाने राजनीति की जा रही है, एक वर्ग विशेष को निशाना बनाया जा रहा है। यदि नगर निगम अपने भ्रष्टाचार को समाप्त कर पाता, वह राजनीतिक कार्रवाई करने की बजाय लोगों के हित को प्राथमिकता देते हुए कार्य कर पाता, तो शायद ऐसे हादसों में अपनी जान गंवाने वाले लोगों की जिंदगी बच सकती थी। लेकिन अभी तक का इतिहास लोगों को इस बात के लिए आश्वस्त नहीं करता कि ऐसी कोई घटना फिर नहीं घटेगी।